सच्चा-सा किस्सा
- Ruchi Aggarwal
- Jul 13
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जब वो छोटी थी तो कुछ पुरानी हो चली चीजों को लेकर मां से अक्सर लड़ती थी कि इन्हें फेंक क्यों नहीं देती या किसी जरूरतमंद को दे दो ! तब मां मुस्कुराती हुई कहती "नहीं अभी तो नई जैसी है” ।
उसे आज भी याद है एक दिन मां को कहीं शादी में जाना था तब वह अलमारी से साड़ी निकाल कर पहनने को हुई तो उसने कहां - 'मां ये मरून रंग की साड़ी आपकी अलमारी में सालों-साल से लटकी हुई है , ना आप इसे पहनती है ना इसे निकालती है ,दे दो ना किसी को' … फिर मां गहरी सांस लेकर उसे छेड़ती हुए कहती "पुरानी तो मैं भी हो चली हूं मुझे भी निकाल दें" और वो उनकी इस बात पर चिड़ जाती थी और वहां से चली जाती थी कि आप ऐसी बातें क्यों करती हो !
आज जब घर के पुराने हो चले reading लैंप को देख कर उसका बेटा उससे कहता है- 'मम्मी ये लैंप कितना पुराना है इसे दे दो, नया तो है ही हमारे पास', उसने भी आनाकानी की और आज उसे अपनी मां अचानक याद आई। ये लैंप मां ने उसे शादी में दिया था क्योंकि उसे किताबें पढ़ने का शौक था, आज उसे एहसास हुआ कि पुराना सामान सिर्फ सामान नहीं होता ढेरों यादें, बातें , अहसास का खजाना होता है, पुराने सामान में कितने अहसास दबे और छुपे बैठे हैं जो पुराने वक्त के सुनहरे पलों को संजोए रहते हैं। आज इस बात का अहसास हो रहा है और फिर दिमाग में एक बात और आई वक्त कितना आगे निकल गया है उसने मन ही मन मां से पूछा- मां, क्या मैं भी पुरानी हो गई हूं!??
पुराने एहसासों में अनकही छुपी-सी बातों में
पुराने किस्से सांस लेते हैं
उन्हें थम कर, ठहर कर थोड़ा-जी लेना
वो वहां से
खोए हुए सुनहरे पलों को आवाज़ देते हैं।
रुचि हर्ष
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