ओस की बूंदे
- Ruchi Aggarwal
- Jul 31
- 2 min read

अक्सर सदियों में और बारिश के मौसम में सुबह-सुबह मेरी Balcony में लगे Money Plant के पौधो पर मोती चमकते है- छोटी छोटी ओस की बूंदे । उनको अपनी उगुलियों
पर लेकर अपने चेहरे पर, आँखो पर लगाना मुझे बेहद पसंद है, ये कुदरती मोती है अनमोल है और मैं शायद स्कुल में थी तब से हि काव्य कि तरफ मेरा प्रेम और आर्कषण था और इन ओस की बूंदो को देखकर मुझे अटलजी कि ये पंक्तियां याद आती है।
हरी हरी दूब पर
ओस की बूंदे
अभी थी,
अभी नहीं हैं|
ऐसी खुशियाँ
जो हमेशा हमारा साथ दें
कभी नहीं थी,
कहीं नहीं हैं|
क्काँयर की कोख से
फूटा बाल सूर्य,
जब पूरब की गोद में
पाँव फैलाने लगा,
तो मेरी बगीची का
पत्ता-पत्ता जगमगाने लगा,
मैं उगते सूर्य को नमस्कार करूँ
या उसके ताप से भाप बनी,
ओस की बुँदों को ढूंढूँ?
सूर्य एक सत्य है
जिसे झुठलाया नहीं जा सकता
मगर ओस भी तो एक सच्चाई है
यह बात अलग है कि ओस क्षणिक है
क्यों न मैं क्षण क्षण को जिऊँ?
कण-कण मेँ बिखरे सौन्दर्य को पिऊँ?
सूर्य तो फिर भी उगेगा,
धूप तो फिर भी खिलेगी,
लेकिन मेरी बगीची की
हरी-हरी दूब पर,
ओस की बूंद
हर मौसम में नहीं मिलेगी|
कितनी सुन्दर और सच्ची बात है भगवान की इस सुन्दर सृष्टि में हर चीज़ अपना अस्तित्व लेकर पैदा हुई है चाहे वो छोटी-छोटी ओस की बूंदे हो या आसमान में चमकता सूर्य , और सही मायने में यदि सूर्य से पूछेंगे तो सूर्य भगवान बोलेंगे कि मैं कहां बड़ा हूं मैं तो छोटी-छोटी किरनों से बना हूं और कुदरत की इन छोटी-छोटी में बूंदो में भी मै हूं । हम बड़े नाम और काम की होड़ में , सूर्य की तरह प्रकाशित होने के लिए अस्तित्व की दौड़ में, भुल हि जाते है कि छोटे-छोटे पलों में जिंदगी का आनंद और जिंदगी को सही मायने में जीने के लिए जो ऊर्जा है वो भी वही छिपी हुई है । बस उन्हें जीने के लिए महसूस करने के लिए कुछ पल ठहरना होगा मुठ्ठीयों को खोलकर उंगलियों से महसूस करना होगा।
कुछ पक्तियां अटल जी कि इस काव्य रचना को समर्पित-
अस्तित्व की लड़ाई तो चलती रही है चलती रहेगी
लक्ष्य की दौड़ में जिंदगी
की सांस फूलती रही फूलती रहेंगी
तुम कुछ पल ठहर कर
ओस की बूंद को आंखों में भर लेना
वो दिल तक चली जाएगी
ठंडक के साथ
जिंदगी में सुकुन लायेंगी ।
रुचि'हर्ष'
Writer & Life Coach
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