ऋतु आए फल होए !
- Ruchi Aggarwal
- Aug 25
- 2 min read

वो बहुत देर से कमरे की सफ़ाई का काम कर रही थी इधर का सामान बेवजह इधर से उधर कर रही थी ।अचानक कमरे के फर्श पर एक दाग-सा उसे दिखाई दिया, जो वक्त के चलते और पीला पड़ गया था तो उसे रगड़ने बैठ गई पर नहीं मिटा तो साबुन सोडा न जाने क्या-क्या यतन करने लगी पर मिटा ही नहीं, उसने भी जाने क्या ठान रखी थी कि आज इसे मिटा कर ही दम लुंगी। यह घटना उसका 18 साल का बेटा देख रहा था कभी कहता "क्या मम्मी आज आप को क्या हो गया है दिवाली थोड़े ही है जो इतनी सफाई कर रही हो उसने अनसुना किया बस अपनी ही धुन में थी- दाग मिटाने की धुन थी, या कोई और बात यह भी पता नहीं... अचानक वह बोला-’अरे! मम्मी ये दाग़ हमने नहीं लगाया , घर थोड़ा पुराना हो गया है ना एक समय के बाद पत्थर पीले पड़ ही जाते हैं,जब नया घर देखें तब नये पत्थर आपकी पसंद के लगवा देंगे और हां, आप ही तो कहते हो वक्त को बदलने का सही समय नहीं है तो वक्त को और हालात को अपना लो इसी तरह यह दाग़ है, हम दो में से एक ही काम कर सकते हैं या तो इसे घर का हिस्सा बना लो या घर बदल डालो, तो घर तो हम अभी बदल नहीं सकते तो क्यों ना इसे हिस्सा बना ले और मुझे तो ये इतना भी बुरा नहीं लगता ,जो आज आपको अचानक ये इतना अखर रहा है ‘ ,ये बात सुनकर उसके भीतर की बेचैनियां अचानक शांत हो गई और जो उथल-पुथल अंदर चल रही थी वो भी कम होती नज़र आई और
अचानक दाग का पीलापन कम हो गया !
अधूरेपन की बेचैनी उन दबी हुई इच्छाओं के कारण भी होती है जो हालात के चलते पूरा होने में बहुत समय ले रही होती है ऐसे हालात जो नियति के अधीन होते हैं वो हमारे बस में नहीं है( Area that is not in our control, ) पर इसका मतलब ये नहीं कि इच्छाओं को खत्म कर दें इसके बजाय करना बस ये है,
बस धैर्य को बांध के रखना है।
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।
इस लिए मन की बेचैनियों से बात करना और कहना - जो तेरे बस में नहीं है उनसे हाथापाई मतकर जिंदगी खूबसूरत है और मैं जिंदगी को मेरा बेस्ट दे रहा हूं
सही वक्त का इंतजार कर ।
रुचि हर्ष
(लेखिका और लाइफ कोच)



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